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एक रूप जीवन का ये भी !!

मैं हूँ इसीलिये.....
मैं हूँ इसीलिये.....
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कल अपनी एक सहेली के साथ बाज़ार जा रही थी तो अचानक उसने एक कुत्ते को देखकर कहा,”मुझे ये बहुत भयानक लगता है”. मैंने कुछ जवाब नहीं दिया पर मेरा ध्यान उस जानवर की तरफ चला गय. मैंने उसे गौर से देखा, मुझे समझ नहीं आया की उसमे भयानक क्या था? एक कुत्ता जिसके पीछे के दोनों पैर खराब थे, ढंग से चल भी नहीं प् रहा था, आँखों में एक बेबसी सी थी. मुझे वो भयानक ही नहीं लगा. भला एक इंसान के लिए, एक ऐसा जानवर जो ढंग से चल भी नहीं पा रहा, भयानक कैसे हो सकता है?

मैं सोच रही थी जीवन के कितने रूप हैं . इश्वर ने उस कुत्ते को भी क्या ज़िन्दगी बख्शी, उसके दो पैर खराब, किसी ने पाला गले में पट्टा बाँधा और फिर अनजान मोहल्ले में छोड़ दिया. कसूर क्या था, मुझे नहीं पता . लेकिन हाँ , उसकी मुश्किलों का अंत नहीं , आखिर मोहल्ले के और कुत्ते भी तो है. वो रोज़ अपना रुआब उसपर दिखाते है. क्योंकि पैर खराब होने की वजह से वो कमज़ोर पड़ जाता है तो शायद खा भी नहीं पाता है ढंग से. चुपचाप किसी कोने में बैठा रहता है, कई बार भ्रम सा होता है, शायद मर गया है. पर जानवर आत्म-हत्या नहीं करते, इतनी सामर्थ्य होती है की जीवन कैसा भी मिले वो पूरी शिद्दत से जीते हैं।

आज उसे कोई व्यक्ति लाठी से पीट रहा था . कुत्ते का सबर इतना की पलटकर एक बार भी वार नहीं किया…. ..शायद वो इंसान नहीं है इसीलिए . व्यक्ति का कहना था की कुत्ता पागल है और किसी को काटा था. मुझे लगा कुत्ता पागल है तो एक बार पलट कर इसे भी काट क्यों नहीं रहा . इस वक़्त तो वो व्यक्ति किसी जानवर से कम नहीं नज़र आ रहा था और वो कुत्ता तो न जाने कितना समझदार लग रहा था .

उस कुत्ते ने तो अगर किसी को काटा भी होगा तो भी किसी षड़यंत्र के अंतर्गत ऐसा सोच-समझकर नहीं किया होगा. यह तो उसका स्वभाव है, कुछ अस्वाभाविक लगा होगा तो क्रुद्ध होकर काट लिया होगा . परन्तु उस व्यक्ति को क्या कहूं, जिसे इश्वर ने इंसान का जीवन बख्शा और वो इंसान नहीं बन पा रहा ? क्या उसके पास समझने की क्षमता उस जानवर से कम है ?

यह मनुष्यो की वह दुनिया है, जहां लोग परीक्षा में कम अंक आने पर अपना जीवन ख़त्म कर लेते हैं,क्योंकि उन्हें लगता है की जीवन में अब कुछ बचा ही नहीं…. . वही दुनिया के किसी कोने में कोई एक वक़्त की रोटी को तरसता है पर फिर भी जीने का हौंसला रखता है.

यहाँ कोई आत्म-हत्या कर लेता है, क्योंकि घरवाले उसकी शादी उसकी पसंद के इंसान से नहीं करना चाहते, उन्हें लगता है की उनकी ज़िन्दगी सिर्फ उसी व्यक्ति की वजह से खूबसूरत है, और कोई मकसद ही नहीं …….. वही कोई एक दिहाड़ी मजदूर सुबह घर से निकलता है तो उसे पता नहीं होता की शाम को घर में चूल्हा जलेगा भी या नहीं परन्तु वह फिर भी किसी उम्मीद के सहारे रोज़ काम पे जाता है, जी रहा है.

ये इंसानों की वो दुनिया है, जहां किसी को कूलर में भी गर्मी लगती है, दुखी होते हैं की उनके पास एसी नहीं हैं, वही कोई ऐसा भी है जिसे गर्मी से राहत पाने को सिर्फ एक पेड़ की छाँव की तलाश रहती है.

मेरी एक सहेली रोज़ मुझसे कहती है की यार मैं अपनी लाइफ से बहुत परेशान हूँ, मेरे ऑफिस वाले जितनी सैलरी देते हैं उसका चार गुना काम करवाते हैं …… कितना बेकार नसीब है मेरा ……. मैं सोचती हूँ ये नसीब खराब है तो उनका नसीब क्या होता है जो छोटे छोटे दुध्मुहें बच्चों को इस गर्मी के मौसम में कडकडाती धुप में ज़मीन पर लिटाकर सड़क पे गड्ढा खोदते हैं, सब्जी बेचते हैं ? उनकी महनत की कीमत क्या सिर्फ उतनी ही होती है जो उन्हें मिलती है? और उस बच्चे ने जो अपना तन धुप में जलाया, उसकी कीमत क्या होगी ?

एक हमारे घरों के बच्चे होते हैं, जैसे मेरी एक दीदी हमेशा अपने बेटे की चिंता में रहती हैं, “अरे देखना भैया सीढ़ी की तरफ जा रहा , पकड़ो वर्ना गिर जाएगा. ओह्ह भैया के गले पर शर्ट के कपडे से रशेस आ गये. अरे भैया अमरुद धोकर खाओ वर्ना पेट में कीडे पड़ जायेंगे, तबियत खराब हो जाएगी ……. सही बात है बच्चों का ख़याल रखना भी चाहिये…. …. पर मैं हमेशा सोचती हूँ की उन बच्चों के पेट में कीडे नहीं पड़ते क्या जो कूडे में से खाना निकाल कर खा लेते हैं ?

कोई वृद्ध व्यक्ति राह में चलते चलते अचानक गिर जाता है , बड़ी मुश्किल से अपनी लाठी के सहारे उठकर खड़ा होता है , देखकर पता चल रहा है की वो पैदल चल पाने की स्थिति में नहीं, पर वो उठता है, डगमगाते कदमो से आगे बढ़ता है और चलता रहता है. शायद रास्ते में फिर कहीं गिरे, पर घर तो पहुचना ही है ………. और किसी को घर से चार कदम की दूरी की दूकान पर जाने के लिए भी कार चाहिए .

हम अपने एसी ऑफिसों में दिन भर काम करके कम से कम इतना तो कमा ही लेते हैं की गुज़ारा आराम से चल सकता है . परन्तु दिन भर महनत करके वही एसी ऑफिस बनाने वाले मजदूर इस का १0 % भी नहीं कमा पाते है। उनका तो गुज़ारा भी नहीं चल पाटा होगा पर फिर भी गुज़ारा हो जाता है …….हमारा नसीब उनसे तो अच्छा ही है .

जानवर से बात शुरू करके मैं इंसानों पर आ गयी, इसका अर्थ यह नहीं है की मैंने दोनों को एक श्रेणी में रखा है …..पर हाँ जीवन सबका अनमोल है. मैं सिर्फ यह कहना चाह रही हूँ की आप अपने जीवन की अहमियत समझे साथ ही दूसरों के जीवन की भी कदर करें. फिर वो चाहे जानवर हो या इन्सान. अच्छा-बुरा, सफलता-असफलता, ख़ुशी-गम, प्रतिष्ठा, सम्मान-अपमान, सब हम इंसानों की बनायीं हुई चीज़ें हैं, जबकि जीवन हमे इश्वर ने दिया है. इंसान की बनायीं हुई चीज़ों की वजह से इश्वर की दी हुई चीज़ों का अपमान न करे. मनुष्य सामाजिक प्राणी है, समाज ने ये सब चीज़ीं मनुष्य की सहूलियत के लिए बनायी, अगर ये बंदिशें लगने लगें, घुटन देने लगें तो इनका त्याग करें, कुछ नया सोचें, न की अपने जीवन को त्याग दें ……..

दुनिया को करीब से देखिये तो सही, यहाँ लोग हमसे कम साधनों में भी हमसे ज्यादा सुकून से सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं . अपने जीवन की मुश्किलों से हरपल नए ढंग से लडते हैं पर जीने का हौंसला नहीं छोडते क्योंकि जीवन तो इश्वर का वरदान है और हमे इसे संवारने का हरसंभव प्रयास करना है ….. क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?

– अपराजिता

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