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कहीं चला गया हो शायद
कोई ठिकाना मिल गया होगा
दे दिया हो किसी ने घर
शायद कोई अपना मिल गया होगा
वो बेबसी जो थी उन आँखों
मिट तो गयी ही होगी
जो एक फटी शर्ट थी उसकी
वो सिल तो गयी ही होगी
हो सकता है किसी ने रख लिया हो
अपने घर किसी काम के लिए
उसे आसरा मिल गया हो ठण्ड में
वो करे श्रम अनाज के लिए
या फिर शायद हार गया हो
वो ठण्ड से अपनी लड़ाई
और उसकी दुर्बल काया ने
कर दी हो उससे बेवफाई
जब कई स्वेटर और मफलर में
हमे ठण्ड ने कंपकपी लगायी होगी
तब कैसे उस वृद्ध ने फटे कपड़ो में
अपनी जान बचाई होगी
इतनी गर्मी किस आग में होगी
जो सर्द हवाओं को गर्म कर दे
इतनी शक्ति किस आत्मा में होगी
जो ज़र्ज़र शरीर में ऊष्मा भर दे
वो दीखता नहीं अब उस मंदिर पे
कहाँ गया मैं सोचती रहती हूँ
वो गरीब बूढा एक ज़र्ज़र व्यक्ति
मैं उसको खोजती रहती हूँ
जिसे भरपेट खाना ना मिले
जो फटे कपडे पहने रहता है
उसकी मदद को ही इश्वर भी शायद
उसे सर्दी नहीं सहने देता है
याद है मुझे कहा था किसी ने
कोई गरीबी से नहीं मरता है
देखो चिड़ियों को, पशुओं को
कोई सर्दी से नहीं मरता है
मरते हैं जब उनकी मौत आती है
होनी प्रबल सबको बेबस बनाती है
हाँ, कभी गरीबी तो कभी सर्दी, और
कभी भूख के रूप में आती है …..
– अपराजिता
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