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आज के इस कलयुग में
बच्चे पैदा होने से पहले ही
बन जाते हैं विद्वान.
और खींचते हैं बड़े होकर
बड़े लोगों के कान….
हे ईश्वर ! ऐसी तरक्की मत देना
निरुद्देश्य भटकना पड़े
ऐसी उन्नति मत देना….
जाने क्यों हम सब बंधे हैं
किसी अज्ञात डोर से
घूम रहे हैं इस भयावह जंगल में
बिना किसी छोर के……
बच्चों को ज्ञान के नाम पर
पता नहीं क्या पढाया जा रहा है
दोस्ती शत्रुता हिन्दू-मुस्लिम का भेद
बचपन से ही बताया जा रहा है….
प्रभु इस धरती पर
सबको आपने बनाया
फिर मनुष्य में ये
भेदभाव कैसे समाया?
मै तो बस इतना जानती हूँ
की जो कुछ भी आपने बनाया
वह सजीव है………….
और सजीवों में प्राण होता है
उन्हें भी दुःख दर्द का एहसास होता है
फिर मानव इतना
क्रूर क्यों बन जाता है
इन बेजुबान प्राणियों पर
क्यों जुल्म ढाता है?
आज का मानव पेड़ों को
निर्ममता से काट डालता है
इन बेजुबान प्राणियों के अरमान
छाँट डालता है……….
मनुष्य के भय से इन प्राणियों का
अपना बसेरा नहीं होता
इनके जीवन में कभी
निर्भय सवेरा नहीं होता
आप मनुष्य को
कठपुतली की तरह नाचते हैं
फिर उससे ऐसे दुष्कर्म
क्यों करवाते हैं?
– अपराजिता
दोस्तों कविता लिखनी तो मुझे कभी भी नहीं आती थी ….. पर फिर भी ऐसी कोशिश हमसे अनजाने में ही कई बार हो जाती है. 🙂 🙂 और ये कविता हमने तब लिखी थी जब हम क्लास 10th में थे…….. इस कविता को पढ़कर कभी लगता है की ये मेरा सबसे असफल प्रयास है पर कभी कभी लगता है क़ि शायद यही मेरी सबसे अच्छी कविता ( शायद कविता ) है. पर जो भी है अब तो हमने अपने ब्लॉग पे पोस्ट कर दी है और आप लोगों का अमूल्य समय भी लिया ……… माफ़ करियेगा ………
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